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Vidyapati Kis Kaal Ke Kavi the: विद्यापति किस काल के कवि थे ?

Vidyapati Kis Kaal Ke Kavi the: आपने विद्यापति का नाम किताबों में या कभी न कभी अवश्य सुना होगा। विद्यापति ने अनेक ग्रंथों की रचना की थी, और उन्होंने अवहट्ट तथा मैथिली भाषा में भी ग्रंथों की रचना की। विशेषकर उन्होंने संस्कृत का प्रयोग किया। क्या आप जानते हैं कि विद्यापति किस काल के कवि थे?

यदि नहीं, तो आइए जानते हैं कि विद्यापति किस काल के कवि थे, उनका जन्म कब हुआ था, और उनके जीवन से जुड़ी विशेष जानकारियों पर विस्तृत चर्चा करते हैं।

विद्यापति किस काल के कवि थे?

विद्यापति आदिकाल के कवि थे। उन्होंने अवहट्ट, मैथिली, और संस्कृत भाषाओं में कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जो आज भी साहित्यिक दृष्टि से अत्यधिक लोकप्रिय हैं। उनके साहित्य में विद्वत्ता और भावुकता का अनूठा समागम देखने को मिलता है, जो उनके समय के सांस्कृतिक परिवेश को प्रतिबिंबित करता है। Vidyapati Kis Kaal Ke Kavi the

विद्यापति का जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि

विद्यापति जी का जन्म 1352 ई. में उत्तर बिहार के मिथिला क्षेत्र के मधुबनी जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम गणपति ठाकुर था, जो एक शैव ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते थे। उनका परिवार भगवान शिव का परम भक्त था, और इसी धार्मिक पृष्ठभूमि का प्रभाव विद्यापति के जीवन और कृतित्व पर भी पड़ा।

विद्यापति की प्रारंभिक रचनाएँ

1401 में सुल्तान अर्सलान को पराजित कर गणेश्वर के पुत्र वीर सिंह और कीर्तिसिंह ने इतिहास रचा, जिसमें विद्यापति का महत्वपूर्ण योगदान था। इस विजय के पश्चात विद्यापति ने मैथिली में राधा और कृष्ण के प्रेम गीतों की रचना आरंभ की। यद्यपि विद्यापति शिव के उपासक थे, उन्होंने अपने अधिकांश गीतों में राधा और कृष्ण के प्रेम का वर्णन किया है।

विद्यापति की प्रमुख रचनाएँ

विद्यापति की रचनाओं में विभिन्न विषयों और भावनाओं का अद्भुत संयोजन देखने को मिलता है। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं: Vidyapati Kis Kaal Ke Kavi the

  • शैवसर्वस्वसार.प्रमाणभूत संग्रह
  • गंगावाक्यावली
  • विभागसार
  • दानवाक्यावली
  • दुर्गाभक्तितरंगिणी
  • वर्षकृत्य
  • गोरक्ष विजय
  • मणिमंजरी नाटिका
  • पदावली
  • शैवसर्वस्वसार
  • गयापत्तालक
  • कीर्तिलता
  • कीर्तिपताका
  • भूपरिक्रमा
  • पुरुष परीक्षा
  • लिखनावली

विद्यापति की मृत्यु

विद्यापति की मृत्यु 1448 ई. में हुई थी। वे अपने समय के उच्च कोटि के कवि माने जाते थे और उनकी कृतियों ने उन्हें अमर बना दिया।

विद्यापति का श्रृंगारिक कवि रूप

विद्यापति को अक्सर श्रृंगारिक कवि के रूप में देखा जाता है। उनके काव्य में प्रेम और श्रृंगार की सुंदर अभिव्यक्ति देखने को मिलती है।

  • विद्यापति शैव थे, इसलिए उनकी भक्ति का केंद्र शिव-पार्वती होते थे, न कि राधा-कृष्ण।
  • उन्होंने अपने संरक्षक राजा शिव सिंह की स्तुति और मनोरंजन के लिए प्रतीकात्मक रूप से कृष्ण का उपयोग किया है, जो वास्तव में शिव सिंह हैं।
  • श्रृंगार से संबंधित तर्कों के आधार पर विद्यापति के काव्य को निराला ‘नागिन की लहर’ कहते हैं, जबकि बच्चन सिंह इसे ‘खजुराहो के मंदिरों का अध्यात्म’ कहते हैं।

विद्यापति का भक्त कवि रूप

विद्यापति को भक्त कवि के रूप में भी देखा जाता है। इस दृष्टिकोण के पीछे निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए जाते हैं:

  • विद्यापति के पद यदि अलंकारिक या अश्लील होते तो उन्हें मंदिरों में क्यों गाया जाता? चैतन्य महाप्रभु जैसे भक्त उनकी बात सुनकर बेहोश क्यों होते?
  • बाद के काल में कृष्णदास और गोविंददास जैसे कवियों ने विद्यापति को एक भक्त कवि के रूप में ही महत्व दिया है।
  • यदि सूरदास राधा-कृष्ण के श्रृंगार का विस्तार से वर्णन कर भक्त कवि बन सकते हैं, तो विद्यापति क्यों नहीं?
  • विद्यापति ने शिव स्तुति, गंगा स्तुति, काली वंदना, और कृष्ण प्रार्थना जैसे भक्ति छंदों की भी रचना की है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का कहना है, “आध्यात्मिक रंग का चश्मा आजकल बहुत सस्ता हो गया है, उसे चढ़ाकर जैसे कुछ लोगों ने ‘गीत गोविंद’ को आध्यात्मिक लक्षण बताया है, वैसे ही विद्यापति के इन पदों को भी।” Vidyapati Kis Kaal Ke Kavi the

आचार्य रामचंद्र शुक्ल कहते हैं, “जयदेव की दिव्य वाणी की स्निग्ध धारा जो काल की कठोरता में दबी हुई थी, विश्राम पाते ही मिथिला के महलों में प्रकट हुई और कोयल के गले से विद्यापति के गले से फूट पड़ी।”

शांतिस्वरूप गुप्त के अनुसार, “विद्यापति पदावली ने साहित्य के क्षेत्र में जिस अभिनव वसंत की स्थापना की है, उसकी सुंदरता से आज भी पाठक मुग्ध हो जाते हैं क्योंकि उनके गीतों में प्रवाहित होने वाली संगीतमय धारा अपनी लय और माधुर्य से पाठक या श्रोता को मुग्ध कर देती है।”

श्याम सुंदर दास कहते हैं, “हिंदी में वैष्णव साहित्य के पहले कवि प्रसिद्ध मैथिली कोकिल विद्यापति बने। उनकी रचनाएँ राधा और कृष्ण के पवित्र प्रेम से ओतप्रोत हैं।”

रामकुमार वर्मा के अनुसार, “राधा का प्रेम शारीरिक और वासनामय प्रेम है। आनंद उसका लक्ष्य है और सौंदर्य उसकी गतिविधि है।”

विद्यापति की उपाधियाँ

विद्यापति को कई उपाधियों से सम्मानित किया गया था, जो उनकी साहित्यिक प्रतिभा और विद्वत्ता को दर्शाती हैं: Vidyapati Kis Kaal Ke Kavi the

  • मैथिल कोकिल
  • अभिनव जयदेव
  • लेखन कवि
  • खेलन कवि
  • वयः संधि कवि
  • दशावधान
  • कवि कंठहार

निष्कर्ष

इस लेख में हमने विद्यापति के काल, उनके जीवन, रचनाओं, और साहित्यिक उपाधियों के बारे में विस्तार से चर्चा की है। विद्यापति का काव्य प्रेम और भक्ति का अनूठा संगम है, जो आज भी पाठकों को प्रभावित करता है। आशा है आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। Vidyapati Kis Kaal Ke Kavi the

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